ज़्यादातर आहार द्वारा ही रोग की उत्पत्ति होती है और सही आहार के सेवन से हम इससे मुक्त भी हो सकते हैं। रोग से बचने का एक सही तरीका है कि हम आहार का चुनाव सही करें ताकि रोग होने ही न पाए।
यह बात संशोधनों द्वारा सिद्ध हो चुकी है कि अधिकतर खाने की चीज़ों से ऐसे तत्त्व पाए जाते हैं जिनसे रोग मुक्ति में सहायता मिलती है। यदि आप इस बारे में जानकारी रखते हैं और विश्वास व धैर्य के साथ इस पर अमल करते हैं तो आहार द्वारा रोग मुक्ति संभव है। छोटी-छोटी बीमारियों में तो यह पूर्ण तरह से प्रभाव करती है जैसे कब्ज़, सर्दी-खाँसी, पेट दर्द, स्थूलता वगैरह। बड़ी और पुरानी बीमारी में भी दवाइयों के साथ कुछ पूरक उपचार जैसे मसाज, एक्युप्रेशर, एक्युपंक्चर, लोहचुंबक चिकित्सा, योग, व्यायाम इत्यादि के साथ आहार चिकित्सा लेने पर बीमारी से ज़ल्दी छुटकारा पाना संभव होता है और बीमारी जड़ चली जाने में सहायता होती है। कैंसर जैसी बीमारी में भी आहार द्वारा छुटकारा पाना संभव है लेकिन उसके लिए किसी जाने-माने तज्ञ डॉक्टर के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।
हमें इस बात की समझ चाहिए कि किन चीज़ों के सेवन से हमें क्या लाभ मिलता है। हमारी प्रकृति के लिए कौन सी चीज़ें सही व उपयोगी हैं, इस बात को समझना आवश्यक है। शरीर में वात, कफ, पित्त इन तीनों का संतुलन बनाए रखना आवश्यक होता है। जिस इंसान में ये तीनों दोष सम मात्रा में संतुलित रहते हैं वे समप्रकृति कहलाते हैं। आपको अगर समप्रकृति बनना है तो आपको स्वास्थ्य विषयक नियमों का पालन करना होगा। प्रकृति को समा बनाने के लिए आहार बहुत ही बड़ा कार्य करता है। हरदम इस बात की खबरदारी लें कि वात, कफ, पित्त में वृद्धि न होने पाए। वायु बढ़ जाए तो बस्ती का उपयोग करें, पित्त बढ़ जाए तो विरेचन लें और कफ बढ़ जाने पर वमन करें।
हर इंसान को अपने प्रकृति के अनुसार समतोल, पोषक आहार लेना ज़रूरी है। हर एक को स्वच्छ जल, छाछ या दूध लेना आवश्यक है। ॠतु अनुसार फलों का सेवन करें। हर ॠतु में, हवामान में बदलाव होता है। उसके अनुसार आहार में बदलाव करके शारीरिक प्रतिकार क्षमता और ताकत कायम रखें। ठंढ में जठाराग्नि प्रदीप्त होती है। इस समय आहार में मधुर व स्निग्ध पदार्थ लेना चाहिए। ठंढ में शक्ति का संचय करने के लिए दूध, घी और पाक (रसायन) अधिक प्रमाण में लेना चाहिए। आँवला, टमाटर, बैंगन, पालक, फल इत्यादि का भरपूर सेवन करने से शरीर सुदृढ़ और उत्साही बनता है।
गर्मियों में पित्त विदग्ध होने के कारण जठाराग्नि मंद हो जाती है इसलिए भूख भी कम लगती है। आहार सहजता से पचता नहीं है जिससे जुलाब, उलटियाँ इत्यादि रोग हो सकते हैं। ऐसे समय में आहार कम लेना चाहिए। आहार में नींबू, छाछ, कच्चा आम इत्यादि का सेवन लाभदायक होता है।
बरसात के दिनों में शरीर में वायु का प्रकोप बढ़ जाता है। जठराग्नि मंद हो जाती है, जिससे आहार का पचन ठीक से नहीं होता और बार-बार बीमारी दबोच लेती है। इसे टालने के लिए चातुर्मास के चार मास एक बार सादा भोजन करना हितकर होता है। उसी तरह नियमितता से खट्टे-मीठे फल, नींबू, शहद और अदरक के रस का सेवन लाभप्रद होता है।
रोग होने के बाद इसे ठीक करने से अच्छा है ‘पथ्य का पालन करें’, पथ्य का पालन करनेवालों को रोग नहीं होता, पथ्य का पालन न करनेवालों का रोग हजारों दवाइयों के बावजूद ठीक नहीं होता।
इस बात की जानकारी लें कि आहार किस प्रकार औषधि का काम करता है।
कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ
गेहूँ के अंकुर का रस शरीर को सुदृढ़ बनाता है। गेहूँ का अंकुर कैंसर जैसा रोग भी ठीक करने में योगदान देता है। अनेक बीमारियों में यह लाभप्रद होता है। गेहूँ के अंकुर के रस से अम्लपित्त, वातरक्त, दाह, रक्तक्षय, शुक्रक्षय, भ्रम, गर्भस्राव, मूत्रावरोध, आँतों के व्रण, रक्तविकार, गर्मियों में होनेवाला मलावरोध इत्यादि दूर होता है। गेहूँ के अंकुर का रस रोगहारक है।
पुराने चावल से त्रिदोष दूर होता है।
दूध धातुवर्धक व बलकारक है। त्रिलोक में दूध के जैसी उत्तम औषधि दूसरी कोई नहीं है। शास्त्र में दूध को अमृत कहा गया है क्योंकि दूध जीवनदायी रसायनहै। दूध में शरीर के सभी पोषक जीवनसत्व हैं इसलिए दूध पूर्ण अन्न है। गाय का दूध सर्वोत्तम होता है।
दूध मधुर, स्निग्ध, वायु व पित्तहारक, वीर्य उत्पन्न करनेवाला, शीतल, जीवनदायी, बलकारक, बुद्धिवर्धक, अस्थिभंग में सहायक, ऐसा मदद रूपी रसायन है। दूध रेचकक्रिया, वमनक्रिया और नस्यक्रिया की तरह सामर्थ्य बढ़ानेवाला है। दूध जीर्णज्वर, मानसिक रोग, मूर्च्छा, भ्रम, दाह, प्यास, हृदयरोग, रक्तपित्त, अतिसार, श्रम, गर्भस्राव इत्यादि रोगों में औषधि का कार्य करता है।
बकरी का दूध क्षयरोग में गुणकारी होता है और इसके दूध से खाँसी, अतिसार, बुखार दूर होता है। गाय का गरम दूध पीने से कफ व वायु दूर होती है। यह दूध गरम करने के बाद ठंढा करके पीने से पित्त दूर होता है।
ये केवल कुछ उदाहरण दिए हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि आहार द्वारा हम रोग मुक्त हो सकते हैं। हर पदार्थ में रोग को दूर करने के गुण होते हैं।
डॉ. शर्मिला घाटगे
B.A.M.S.