मस्तिष्क यानी वह महत्वपूर्ण हिस्सा, जो हमारे पूरे शरीर और उसकी प्रक्रियाओं पर नियंत्रण रखता है। मस्तिष्क को दो हिस्सों में विभाजित किया जाता है।
- बड़ा मस्तिष्क
- छोटा मस्तिष्क
बड़े मस्तिष्क का कार्य होता है पंचेंद्रियों (आँख, कान, नाक, जीभ व त्वचा) के कार्यों पर नियंत्रण रखना। बड़ा मस्तिष्क विविध शारीरिक प्रक्रियाओं पर यानी श्वसन, पाचन, उत्सर्जन इत्यादि प्रक्रियाओं पर नियंत्रण रखता है। इन क्रियाओं में से श्वसन क्रिया ऐच्छिक नियंत्रण में तथा पाचन एवं उत्सर्जन अनैच्छिक नियंत्रण में होती हैं।
छोटे मस्तिष्क के महत्वपूर्ण कार्य होते हैं – शरीर का संतुलन बनाए रखना, हाथ-पैर की हलचल पर नियंत्रण रखना। मस्तिष्क में बहुत सी मज्जापेशियाँ, मज्जातंतु, रक्तवाहिकाएँ व भिन्न-भिन्न नसें होती हैं। मस्तिष्क में अनेक प्रकार की रासायनिक प्रकियाएँ चलती रहती हैं।
मस्तिष्क विकारों के विविध विकार
- फिट्स आना
- आधा सीसी
- बार-बार चक्कर आना
- विस्मृति होना
- स्नायु की दुर्बलता
- कोमा
मस्तिष्क के विकारों के अनेक कारण हो सकते हैं जैसे-
- अनुवंशिकता
- शारीरिक एवं मानसिक थकान
- तनाव
- विविध व्यसन
- मस्तिष्क में रक्त का सही तरीके से व प्रमाण में न पहुँचना
- ऐक्सिडेंट के कारण मस्तिष्क को चोट पहुँचना
- हार्मोनल बदलाव
- मज्जा प्रेरक का कार्य ठीक से न होना
- होमिओपैथिक दवाइयाँ लेने से बीमारी जड़ से खत्म हो जाती है और इसमें समय भी कम लगता है।
- होमिओपैथिक दवाइयों के बुरे परिणाम नहीं होते। रोगी को दवाइयों की वजह से तकलीफ नहीं होती।
- मस्तिष्क के कुछ विकारों में irreversible pathology होती है। ऐसे में होमिओपैथी स्पीडब्रेकर की तरह काम करती है। बीमारी बढ़ने से पहले ही उसे रोका जा सकता है।
- छोटे बच्चों के विकार जैसे फिट्स आना, चक्कर आना इत्यादि भी पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं।
होमिओपैथिक दवाइयाँ
- बेलाडोना (Belladona) : मस्तिष्क में अतिरिक्त रक्त संचय होता है, जिससे रोगी उत्तेजित होता है। पंचेंद्रियों का कार्य बिगड़ जाता है, मिर्गी का दौरा पड़ता है, उसके बाद जी मिचलाना व उल्टियाँ होती हैं। चक्कर आने से रोगी का संतुलन बिगड़ जाता है। सिर पर हथौड़ी की मार पड़ रही हो इस तरह का दर्द होता है व चेहरा सुर्ख-लाल हो जाता है। ये सारी तकलीफें अचानक और तीव्र गति से होने लगती हैं। ऊपर बताई तकलीफों में बेलाडोना से तुरंत फायदा होता है, विकार समूल नष्ट होते हैं। रोगी को आराम मिलता है।
- आर्निका मोंटाना (Arnica montana) : मस्तिष्क में कोई चोट लगने की वजह से रक्त उस स्थान पर जम जाता है। रोगी का सिर गरम और बाकी शरीर का हिस्सा ठंढा पड़ जाता है। खून जमकर वह हिस्सा काला-नीला पड़ जाता है। रक्तस्राव होने पर संबंधित कोशिका में जख्म होकर, वहाँ पीब जमा होने लगता है। आर्निका दवा देने से इस प्रक्रिया में रुकावट आती है।
- क्यूप्रम मेट (Cuprum met): फिट्स के आने की शुरुआत हाथ-पैर की अंगुलियों की ओर से होती है, जिससे रोगी को अत्यंत तकलीफ होती है। शरीर में संकुचन होता हैं, बहुत डर की वजह से उसे दौरे पड़ने लगते हैं व उसका जी मिचलाने लगता है। अपस्मार में घुटनों की तरफ से होकर पेट तक दौरे पड़ने लगते हैं, जिस कारण रोगी बेहोश हो जाता है व उसके मुँह से झाग निकलने लगता है। ऐसा त्वचा की व्याधियों को दबाने की वजह से होता है। क्यूप्रम मेट दवा देने से यह तकलीफ दूर हो जाती है।
- सिक्यूटा विरोसा (Cicuta virosa): बार-बार हिचकी आना, फिट्स आना, दाँत पीसना, सिर, गरदन और पीठ के मनकों का पीछे की तरफ झुक जाना, शरीर का बुरी तरह से टेढ़ा होना, रोगी का जोर-जोर से कराहना, शरीर को बहुत ठंढ महसूस होना आदि व्याधियों के लिए सिक्यूटा विरोसा अत्यंत गुणकारी औषधि साबित होती है।
- जिंकम मेट (Zincum met): मस्तिष्क के कार्यों का मंद होना, हमेशा थकान का एहसास रहना, रीढ़ की हड्डी के मनकों में विकार होना, शरीर का टेढ़ा-मेढ़ा हो जाना ये सारी तकलीफें अत्यंत डर की वजह से उत्पन्न होती हैं। इन सबके अलावा हाथ-पैर में कंपन व पक्षाघात का दौरा आना भी शामिल है। ये त्वचा विकारों को दबाने की वजह से होता है। यदि विकार पुराना हो तो मस्तिष्क में थकान, मनकों की बीमारी, थरथराहट, दौरा पड़ने की वजह से शरीर का टेढ़ा होना और पैरों में बिलकुल ताकत न रहना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
(सूचना: कभी भी दवाइयाँ स्वयं न लें, डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही दवाइयों का सेवन करना हितकर होता है।)