आधुनिक सुख सुविधाओं के चलते अब लोगों की शरीरिक गतिविधीयों का कम होना, खान-पान पर ध्यान न देना, सारे दिन बंद कमरों में बैठे रहना, अवसादग्रस्त रहना, मोटापा बढना, आर्थेराइटिस, डायबिटीज जैसी बीमारीयाँ, महिलाओं में हॉट फ्लेशेज (मोनोपॉज के समय हार्मोन्स में बदलाव की प्रक्रिया), पुरूषों में प्रोस्टेट ग्रंथी का बढना, नींद में चलने की बीमारी होना भी नींद की कमी के लिए जिम्मेदार है।
चिकित्सकों द्वारा किए गए अध्ययानों में भरपूर नींद न लेने के कई दुष्परीणाम सामने आए हैं। यह भी पाया गया है कि, कम नींद लेने वाले लोगों का वजन बढने की अधिक संभावना रहती है।
अध्ययनों के अनुसार कम सोने से मस्तिष्क के हाइपोथेलेमस में सक्रिय न्यूरॉन्स के एक समूह की कार्यशैली गडबडा जाती है। यही पर ओरेक्सिन नामक हार्मोन भी सक्रिय होता है, जो खानपान संबंधी व्यवहार को नियंत्रित करता है। कम सोने से आपके कार्य की गुणवत्ता में कमी आ सकती हैं और यहां तक कि सोचने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है, और कोई दुर्घटना भी घटित हो सकती है, जैसे गाडी चलाते समय नींद का झोंका आ सकता है।
अलग-अलग आयु वर्ग के लोगों पर नींद को लेकर किए गए अध्ययन में कम नींद लेने वाले लोग अस्वस्थ, थके-थके, कम आकर्षक नजर आए, वहीं भरपूर नींद लेने वाले लोगों के परीणाम ठीक इसके उलट पाए गए। शोधों में यह बात सामने आई है कि पर्याप्त नींद लेने से लोग बेहतर काम कर पाते हैं, क्योंकि शरीर और मस्तिष्क दोनों को आराम की सख्त जरूरत होती है।
गहरी नींद से सोकर उठने पर आप स्वयं को तरोताजा तो महसूस करते ही हैं, साथ ही इससे एकाग्रता और याददाश्त भी बढती है। रोग प्रतिरोधक तंत्र भलीभांति काम करता है। आपकी उत्पादकता और संवेदनशीलता बढाने तथा खुबसुरती को निखारने में भी पर्याप्त नींद की अहम भूमिका हैं।